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नामकरण संस्कार

नामकरण संस्कार पूजा
नामकरण संस्कार, हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक महत्वपूर्ण संस्कार है। यह संस्कार शिशु के जन्म के बाद उसका नाम रखने के लिए किया जाता है। नामकरण संस्कार का उद्देश्य न केवल शिशु को एक उचित नाम देना है, बल्कि उसे सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से स्वीकार करना भी है। इस पूजा के माध्यम से शिशु के जीवन के शुभारंभ के लिए देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। यह संस्कार वैदिक रीति-रिवाजों और मंत्रों के साथ संपन्न किया जाता है।
नामकरण संस्कार का महत्व
नामकरण संस्कार न केवल शिशु के जीवन में शुभता लाने का माध्यम है, बल्कि इसका धार्मिक और सामाजिक महत्व भी है। इसका महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- पहचान और सम्मान: नाम एक व्यक्ति की पहचान का प्रतीक होता है। नामकरण संस्कार के माध्यम से शिशु को समाज में एक विशिष्ट पहचान मिलती है।
- आध्यात्मिक आरंभ: शिशु के जीवन के शुभारंभ के लिए यह संस्कार किया जाता है। इसे बच्चे के भविष्य को सुखमय और समृद्ध बनाने के लिए आवश्यक माना जाता है।
- देवताओं का आशीर्वाद: नामकरण संस्कार में भगवान, पितरों और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है ताकि शिशु पर उनका आशीर्वाद बना रहे।
- सामाजिक संबंध: इस संस्कार के माध्यम से परिवार और समाज शिशु को अपना सदस्य मानते हैं और उसे अपनाते हैं।
- वैदिक परंपरा का पालन: यह संस्कार हिंदू धर्म की वैदिक परंपराओं का हिस्सा है और इसे करना धार्मिक कर्तव्य माना जाता है।
नामकरण संस्कार की तैयारी
नामकरण संस्कार के लिए परिवार को कुछ तैयारियां करनी होती हैं। इस संस्कार को शुभ मुहूर्त में ही किया जाता है। इसके लिए एक योग्य पुरोहित की सहायता ली जाती है।
शुभ मुहूर्त
नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के 11वें दिन या 21वें दिन करना शुभ माना जाता है। यदि इन दिनों में यह संभव न हो, तो ज्योतिष के अनुसार शुभ तिथि और समय निकालकर इस संस्कार को किया जा सकता है।
सामग्री सूची
- पूजा का स्थान गंगाजल से शुद्ध करें।
- तांबे या चांदी का कलश
- नारियल
- आम के पत्ते
- चंदन, हल्दी, कुंकुम और अक्षत
- पुष्प और माला
- घी का दीपक और अगरबत्ती
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर)
- शहद और तुलसी के पत्ते (शिशु के लिए)
- वस्त्र, मिष्ठान और फल
- पीले और सफेद वस्त्र
- जनेऊ और पवित्र धागा
नामकरण संस्कार की विधि
1. स्थान शुद्धि और कलश स्थापना:
- नामकरण संस्कार की शुरुआत स्थान की शुद्धि से होती है। गंगाजल का छिड़काव कर स्थान को पवित्र करें।
- पूजा स्थल पर कलश स्थापित करें। कलश में जल भरें और उसमें आम के पत्ते डालें। उसके ऊपर नारियल रखें।
2. गणेश पूजा:
- सभी शुभ कार्यों की तरह, नामकरण संस्कार में भी गणेश पूजा से शुरुआत की जाती है। भगवान गणेश से पूजा में किसी प्रकार की बाधा न आने की प्रार्थना करें।
3. नवग्रह पूजा:
- नवग्रहों की पूजा कर उन्हें अर्घ्य और पुष्प अर्पित करें। नवग्रह पूजा के माध्यम से शिशु के ग्रहों को शांत किया जाता है ताकि उनका प्रभाव शुभ हो।
4. हवन:
- पवित्र अग्नि प्रज्वलित कर उसमें हवन सामग्री डालें। हवन के दौरान वैदिक मंत्रों का उच्चारण करें। यह शिशु के जीवन को पवित्र और शुभ बनाने के लिए किया जाता है।
5. शिशु को गोद में लेना:
- हवन के बाद पिता या परिवार का वरिष्ठ सदस्य शिशु को गोद में लेते हैं। इसके बाद शिशु के नाम की घोषणा की जाती है।
6. नामकरण की प्रक्रिया:
- पुरोहित या परिवार का वरिष्ठ सदस्य शिशु का नाम चुनकर उसे तीन बार उच्चारण करता है। यह नाम आमतौर पर शिशु की कुंडली के अनुसार रखा जाता है। नाम रखने के बाद शिशु के कान में धीरे-धीरे नाम फुसफुसाया जाता है।
7. आशीर्वाद:
- नामकरण के बाद शिशु को सभी बड़े-बुजुर्गों और उपस्थित अतिथियों का आशीर्वाद दिलवाया जाता है।
8. आरती और प्रसाद वितरण:
- अंत में भगवान की आरती करें और उपस्थित सभी लोगों में प्रसाद वितरित करें।
नामकरण संस्कार में नाम चुनने के नियम
- कुंडली के आधार पर नाम: शिशु का नाम ज्योतिष के अनुसार उसके चंद्र राशि और नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है।
- सार्थक नाम: नाम ऐसा होना चाहिए जो अर्थपूर्ण और सकारात्मक हो। यह नाम शिशु के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है।
- धार्मिक नाम: नाम का धार्मिक महत्व भी हो सकता है, जैसे भगवान के नाम या पौराणिक पात्रों के नाम।
- सामाजिक स्वीकृति: नाम ऐसा होना चाहिए जिसे परिवार और समाज सहज रूप से स्वीकार कर सके।
नामकरण संस्कार के मंत्र
नामकरण संस्कार के दौरान कुछ विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। ये मंत्र भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने और शिशु के जीवन को शुभ बनाने के लिए होते हैं।
गणेश मंत्र
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
नवग्रह शांति मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।
ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः।
ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।
ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः।
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः।
ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः।
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।
ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।
आशीर्वाद मंत्र
जीवेम शरदः शतम्।
आयुष्मान भव। सर्वदा सुखी भव।
नामकरण संस्कार के लाभ
- सकारात्मक ऊर्जा: इस संस्कार से परिवार और शिशु के आसपास सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है।
- ग्रह दोषों की शांति: कुंडली में ग्रह दोष होने पर नवग्रह पूजा से उनका प्रभाव कम होता है।
- आशीर्वाद प्राप्ति: देवी-देवताओं और परिवार के सदस्यों का आशीर्वाद शिशु के जीवन को सुखद बनाता है।
- सामाजिक स्वीकृति: यह संस्कार शिशु को परिवार और समाज में स्थान दिलाता है।
- धार्मिक उन्नति: संस्कार के माध्यम से परिवार की धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं का पालन होता है।
निष्कर्ष
नामकरण संस्कार केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह शिशु के जीवन का एक शुभारंभ है। यह संस्कार उसे एक पहचान देता है और समाज में उसका स्वागत करता है। इस संस्कार के माध्यम से परिवार शिशु के सुखद और सफल जीवन की कामना करता है। हिंदू धर्म की वैदिक परंपराओं का पालन करते हुए यह संस्कार करना न केवल शिशु के लिए, बल्कि पूरे परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी होता है।