Vivah Samskar

विवाह संस्कार

विवाह संस्कार पूजा

विवाह संस्कार हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक महत्वपूर्ण संस्कार है। इसे जीवन के सबसे पवित्र और शुभ कार्यों में से एक माना जाता है। यह संस्कार केवल दो व्यक्तियों के मिलन का प्रतीक नहीं है, बल्कि दो परिवारों के बीच एक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक बंधन को स्थापित करता है। विवाह संस्कार में धार्मिक अनुष्ठानों, मंत्रों और परंपराओं का विशेष महत्व है। इसमें वर और वधू को एक साथ जीवन के हर पहलू को निभाने के लिए तैयार किया जाता है।

विवाह संस्कार का महत्व

विवाह केवल शारीरिक और भावनात्मक संबंध तक सीमित नहीं है; यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चार पुरुषार्थों की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। हिंदू धर्म के अनुसार, विवाह एक दैवीय संस्कार है जो दो आत्माओं को जोड़ता है और उन्हें जीवनभर के लिए एक-दूसरे का साथी बनाता है।

विवाह संस्कार में:

  1. धार्मिक महत्व: यह भगवान के आशीर्वाद से एक पवित्र बंधन है।
  2. सामाजिक महत्व: समाज में विवाह एक मान्यता प्राप्त संस्था है जो परिवार की नींव रखती है।
  3. आध्यात्मिक महत्व: यह आत्माओं का मिलन है और अगले जन्मों तक के बंधन का प्रतीक है।

विवाह संस्कार की तैयारी

विवाह से पहले की तैयारी

  1. मांगलिक कार्यों का चयन: शुभ मुहूर्त का निर्धारण।
  2. वर और वधू का कुंडली मिलान: कुंडली के आधार पर ग्रहों की अनुकूलता सुनिश्चित करना।
  3. स्थान का चयन: विवाह स्थल का निर्णय लेना।
  4. पूजा सामग्री की व्यवस्था: विवाह संस्कार के लिए आवश्यक सामग्री जैसे हल्दी, चंदन, नारियल, पुष्प, पान, सुपारी, अगरबत्ती, घी, धागा, अक्षत आदि तैयार करना।

पूजा स्थल की सजावट

विवाह मंडप को सजाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे फूलों, आम के पत्तों, केले के पत्तों और तोरण से सजाया जाता है। मंडप के चार खंभे चार वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

विवाह संस्कार पूजा की विधि

विवाह संस्कार विभिन्न चरणों में संपन्न होता है। यहाँ विवाह संस्कार के सभी चरणों की विस्तृत जानकारी दी गई है:

1. वरमाला

विवाह समारोह की शुरुआत वर और वधू द्वारा एक-दूसरे को माला पहनाने से होती है। यह अनुष्ठान आपसी स्वीकृति और स्नेह का प्रतीक है।

2. गणेश पूजन

गणेश जी की पूजा हर शुभ कार्य से पहले की जाती है। गणेश पूजन में गणपति को मोदक, फल, फूल और अक्षत अर्पित किए जाते हैं। यह पूजा विध्नों को दूर करने और कार्य की सफलता के लिए की जाती है।

3. कलश स्थापना

मंडप के बीच में कलश स्थापित किया जाता है। इसमें जल भरकर उसमें आम के पत्ते और नारियल रखा जाता है। इसे भगवान की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।

4. कन्यादान

कन्यादान विवाह का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। इसमें वधू के माता-पिता अपनी बेटी का हाथ वर के हाथ में सौंपते हैं। यह परंपरा यह दर्शाती है कि अब बेटी का जीवनसाथी उसकी सभी जिम्मेदारियों का पालन करेगा। इस दौरान निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है:

“इमां कन्यां सरस्वतीं कन्यादानाय संप्रददे।”

5. पाणिग्रहण संस्कार

इस अनुष्ठान में वर वधू का हाथ पकड़ता है और जीवनभर एक-दूसरे का साथ निभाने का संकल्प लेता है। इस दौरान पुरोहित वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते हैं।

6. अग्नि स्थापना और हवन

विवाह मंडप में अग्नि को साक्षी मानकर वर और वधू अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं। अग्नि को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है और इसके समक्ष लिए गए वचन अनंतकाल तक मान्य होते हैं।

7. सप्तपदी

सप्तपदी विवाह का सबसे प्रमुख चरण है। इसमें वर और वधू अग्नि के चारों ओर सात कदम चलते हैं। हर कदम के साथ एक व्रत लिया जाता है:

  • पहला कदम: भोजन की व्यवस्था।
  • दूसरा कदम: शक्ति और स्वास्थ्य।
  • तीसरा कदम: धन का संचय।
  • चौथा कदम: सुख और संतोष।
  • पाँचवां कदम: संतान और उनका पालन-पोषण।
  • छठा कदम: आपसी प्रेम और विश्वास।
  • सातवां कदम: साथ में जीवन जीने का वादा।

8. सिंदूरदान और मंगलसूत्र

इस चरण में वर वधू की मांग में सिंदूर भरता है और मंगलसूत्र पहनाता है। यह वधू के विवाहित होने का प्रतीक है।

9. अशिर्वाद

पूजा के अंत में वर और वधू सभी बड़ों से आशीर्वाद लेते हैं। यह उनके वैवाहिक जीवन की शुरुआत को शुभ बनाने के लिए किया जाता है।

विवाह संस्कार में उपयोगी मंत्र

  1. गणेश पूजन मंत्र: “ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे।”
  2. मंगलाष्टक: यह विवाह मंडप में गाया जाता है।
  3. सप्तपदी मंत्र: “सखा सप्तपदी भव।”

विवाह संस्कार के लाभ

  • आध्यात्मिक उन्नति: यह आत्माओं के मिलन और आध्यात्मिक विकास का मार्ग है।
  • सामाजिक मान्यता: विवाह से पति-पत्नी को समाज में मान्यता मिलती है।
  • परिवार का निर्माण: विवाह से नए परिवार का निर्माण होता है।
  • धार्मिक दृष्टि से पवित्र बंधन: यह जीवनभर के लिए जिम्मेदारी और समर्पण का प्रतीक है।

विवाह संस्कार से जुड़े अन्य पहलू

  1. कुंडली मिलान का महत्व: हिंदू धर्म में विवाह से पहले कुंडली मिलान अनिवार्य माना जाता है। यह वर और वधू के ग्रहों की अनुकूलता और उनके वैवाहिक जीवन की संभावनाओं का निर्धारण करता है।

  2. शुभ मुहूर्त: विवाह के लिए सही समय और तारीख का चयन किया जाता है। यह ज्योतिष के आधार पर तय किया जाता है।

  3. परंपरागत वेशभूषा: वर और वधू पारंपरिक परिधानों में सजे होते हैं। वधू अक्सर लाल या हरे रंग की साड़ी पहनती है, जबकि वर पारंपरिक धोती-कुर्ता या शेरवानी धारण करता है।

    विवाह संस्कार का आधुनिक रूप

    आज के समय में विवाह संस्कार में आधुनिकता और परंपराओं का मेल देखा जाता है। हालांकि रीति-रिवाज और पूजा विधि पारंपरिक ही रहती है, लेकिन सजावट, भोजन, और अन्य व्यवस्थाओं में आधुनिकता का समावेश होता है।

     

निष्कर्ष

विवाह संस्कार एक पवित्र और शुभ अनुष्ठान है जो केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है, बल्कि दो परिवारों और संस्कृतियों का भी संगम है। यह संस्कार न केवल धार्मिक और सामाजिक महत्व रखता है, बल्कि यह दंपत्ति को जीवनभर के लिए एक-दूसरे के प्रति समर्पण, प्रेम और जिम्मेदारी का बोध कराता है। हिंदू धर्म में विवाह को धर्म, संस्कृति और परंपरा का एक अभिन्न अंग माना जाता है, जो मानव जीवन को पूर्णता प्रदान करता है।

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